विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च
विश्व रंगमंच दिवस: हँसी, नाटक और थोड़ा सा इतिहास
हर साल 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है, और आज, 27 मार्च 2025 को भी हम इस खास दिन को सेलिब्रेट कर रहे हैं। ये दिन सिर्फ नाटकों, अभिनय और तालियों के बारे में नहीं है, बल्कि ये उस कला का उत्सव है जो हमें हँसाती है, रुलाती है और कभी-कभी सोचने पर मजबूर कर देती है कि "अरे, ये एक्टर तो मुझसे बेहतर मेरी जिंदगी का ड्रामा कर रहा है!" तो चलिए, एक मजेदार नजरिए से इस दिन का इतिहास और वर्तमान दोनों देखते हैं।
रंगमंच की शुरुआत प्राचीन ग्रीस से मानी जाती है, जहाँ लोग ट्रेजेडी और कॉमेडी के नाटकों को देखने के लिए पहाड़ियों पर जमा होते थे। उस समय नेटफ्लिक्स तो था नहीं, तो ये उनके लिए सबसे बड़ा मनोरंजन था। ग्रीक नाटककारों जैसे सोफोक्लीज़ और अरस्तूफेन्स ने ऐसी कहानियाँ लिखीं जो आज भी हमें प्रेरित करती हैं। मज़े की बात ये है कि उस दौर में सारे किरदार पुरुष ही निभाते थे—हाँ, महिलाओं के रोल भी! सोचिए, दाढ़ी वाला कोई एक्टर साड़ी पहनकर "ऐ जी सुनते हो" बोल रहा हो, क्या सीन होता!
मध्ययुग में यूरोप में चर्च ने रंगमंच को अपने हाथ में ले लिया और धार्मिक नाटकों का चलन शुरू हुआ। लेकिन भारत में भी रंगमंच का इतिहास कम मज़ेदार नहीं था। नाट्यशास्त्र के लेखक भरत मुनि ने 200 ईसा पूर्व में ही रंगमंच के नियम-कायदे लिख डाले थे। हमारे यहाँ नौटंकी और रामलीला जैसे लोक नाटक आज भी गाँव-गाँव में धूम मचाते हैं।
आज का रंगमंच: स्टेज से स्क्रीन तक
अब बात करते हैं 2025 के रंगमंच की। आज रंगमंच सिर्फ चार दीवारों और लकड़ी के स्टेज तक सीमित नहीं है। डिजिटल थिएटर का जमाना है! कोविड के बाद से ऑनलाइन नाटक देखने का ट्रेंड बढ़ा, और अब तो वर्चुअल रियलिटी (VR) में भी नाटक हो रहे हैं। सोचिए, आप घर बैठे हेडसेट लगाकर "अभिज्ञानशाकुंतलम" का लाइव शो देख रहे हों, और दुश्यंत का घोड़ा आपके सामने से गुजर जाए—क्या मज़ा होगा!
हालांकि, पारंपरिक रंगमंच अभी भी जिंदा है। मुंबई का पृथ्वी थिएटर हो या दिल्ली का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD), ये जगहें नए कलाकारों को मौका दे रही हैं। और हाँ, बॉलीवुड भी रंगमंच से ही अपने सितारे ढूंढता है—रणबीर कपूर से लेकर नवाजुद्दीन सिद्दीकी तक, सबकी जड़ें थिएटर से जुड़ी हैं।
थोड़ा मज़ा: रंगमंची टाइप के लोग
रंगमंच सिर्फ स्टेज पर नहीं, जिंदगी में भी है। आपके ऑफिस का वो ड्रामेबाज़ सहकर्मी जो हर मीटिंग में ऑस्कर लेवल का सीन बनाता है, या वो पड़ोसी जो हर छोटी बात को रामायण बना देता है—ये सब अपने आप में रंगमंच के किरदार हैं। तो आज विश्व रंगमंच दिवस पर इन "नाटकबाजों" को भी थोड़ा क्रेडिट दे दें!
अंत में: रंगमंच जिंदाबाद!
चाहे पुराने जमाने के ग्रीक ट्रेजेडी हों या आज के स्टैंड-अप कॉमेडी शो, रंगमंच हमारी भावनाओं का आईना रहा है। ये हमें जोड़ता है, हँसाता है और कभी-कभी अपनी जिंदगी के ड्रामे को हल्के में लेना सिखाता है। तो आज रात, किसी नाटक का टिकट बुक करें, या फिर यूट्यूब पर कोई पुरानी नौटंकी देखें—रंगमंच को सेलिब्रेट करें, अपने अंदाज़ में!
हैप्पी विश्व रंगमंच दिवस, दोस्तों! नाटक चलता रहे, और जिंदगी का स्टेज कभी खाली न हो!
Comments
Post a Comment